Wednesday, January 13, 2010

अध्यात्मिक साम्यवाद की प्रमुख आवश्यकता संवेदनशील प्रशाशन का विकास

                    पारिवारिकता परक  संवेदनशील प्रशाशन का विकास अध्यात्मिक साम्यवाद की  पहली सीढ़ी  है. इस  प्रशाशन में खीझ  नहीं होती. तनाव, दबाव , हताशा, निराशा नहीं होता<  इस प्रशाशन का माडल   सीधी रेखा   में नहीं होता अपितु राउंड में बैठ कर काम   करता है, सामाजिक स्तर पर  कोई bara छोटा नहीं होता, सभी  एक दुसरे के पूरक होते है , एक दुसरे  को कमजोर करने का कोई प्रयास  नहीं करता< सभी आपस में सुख दुःख के भागीदार बनाते है,
                      कंपनी या संसथान का लकच्या सभी मिलजुल कर तय करते  है, ग्राहक को भी वहा परिवार का ही अंग मान कर जेब पर नजर डाली जाती है< एक बात काफी महत्वपूर्ण की लोग अपनी छमता भर काम करते है और आवश्यक आवश्यकता भर लेकर निर्वाह करते है. जब  समान जीवन शैली अपनाना सबका संकल्प होगा तो पैसे की अमीरी गरीबी समाप्त होगी और शोषक-शोषित वर्ग का अंत होगा  अब  समय की माग हो रही है की ऐसे समाज की रचना के लिए हम खुद तैयार हो अन्यथा  समाज अपना रास्ता खुद तय कर लेगा तब काफी देर हो चुकी होगी < हम समय की पुकार सुने<     

Thursday, January 7, 2010

जैसे बढ़ाते अध्यात्मिक साम्यवादी आन्दोलन का एक पहिया रुक गया

किसी का कमेन्ट मुझसे आज  डिलीट हो गया, उसे पढ़ा  भी नहीं था > एक  छोटी सी चूक बढ़ा कारन बन सकती है> समाज परिवर्तन्  की सकारात्मक धारा को अवरुद्ध कर सकती है क्यों की इस संसार में कोई भी बात छोटी  नहीं हुआ कराती>  समाज जिसे  छोटी बात, छोटे  लोग, आदि  कहकर भुला देता है अध्यात्मिक साम्यवाद उसी में महानता की संभावना की तलाश करता है > बर्तमान  कठिनाइयों  का कारन हर स्टार पर नजरादाज करने की आदत  ही है> जैसे बढ़ाते अध्यात्मिक साम्यवादी आन्दोलन का एक पहिया रुक गया >  आशा है अप पुनः सदेश भेजोगे >
धन्यवाद
                              

Tuesday, January 5, 2010

क्या है अध्यात्मिक साम्यवाद

कार्लमार्क्स ने साम्यवाद का नारा दिया था. सम्पूर्ण विश्व में फैले पूजी वाद की जरो को हिलाने में इसकी बरी भूमिका रही> लेकिन दुखद की यह अपनी ही जमीं पर दम तोरने के लिए विवश हुआ > सम्पूर्ण विश्व उसका दंड भी भोग रहा है.> इस विचारधारा से जुरना कभी शान मणि जाती थी> क्यों की इसमे गरीबी अमीरी की खाई को पटाने की शक्ति समाई थी> ग्लोबलिजेशन की अंधी में तबाह होते विश्व के सामने पुनः साम्यवाद जैसे सूत्र की तलाश जग रही है.> अध्यात्मिक साम्यवाद उशी की दिशा में एक पूर्ति हो सकती है > निचे कुछ विचार दिए जा रहे है पाठक से आग्रह है की वे भी अपने विचार भेजे .......


१- कार्लमार्क्स के साम्यवाद में था वर्ग संघर्ष
जबकि
अध्यात्मिक साम्यवाद का सूत्र है संघर्ष नहीं वर्ग सामंजस्य

२- कार्लमार्क्स के साम्यवाद में हरताल के लिए संगठन
जबकि
अध्यात्मिक साम्यवाद का सूत्र है नेक कार्य के लिए सामूहिक संकल्प

३- कार्लमार्क्स के साम्यवाद में पूजी छिन लो और बाट दो
जबकि
अध्यात्मिक साम्यवाद का सूत्र है संपत्ति का लोकहित में स्वैक्छिक नियोजन करना

४ कार्लमार्क्स के साम्यवाद में ये कार्य प्रशाशन के दबाव में होते है
जबकि
अध्यात्मिक साम्यवाद में जानत स्वनुशाशन में सभी निर्णय लेती है.