Saturday, September 30, 2017

राष्ट्र गौरव शास्त्री जी

                                                        राष्ट्र गौरव शास्त्री जी

शास्त्री जी के प्रधानमंत्री बनने तक उनका अपना घर तो क्या एक कार तक नहीं थी. एक बार उनके बच्चों ने उलाहना दिया कि अब आप भारत के प्रधानमंत्री हैं. अब हमारे पास अपनी कार होनी चाहिए.
उस ज़माने में एक फ़िएट कार 12,000 रुपए में आती थी. उन्होंने अपने एक सचिव से कहा कि ज़रा देखें कि उनके बैंक खाते में कितने रुपए हैं? उनका बैंक बैलेंस था मात्र 7,000 रुपए. अनिल याद करते हैं कि जब बच्चों को पता चला कि शास्त्री जी के पास कार ख़रीदने के लिए पर्याप्त पैसे नहीं हैं तो उन्होंने कहा कि कार मत ख़रीदिए.
लेकिन शास्त्री जी ने कहा कि वो बाक़ी के पैसे बैंक से लोन लेकर जुटाएंगे. उन्होंने पंजाब नेशनल बैंक से कार ख़रीदने के लिए 5,000 रुपए का लोन लिया. एक साल बाद लोन चुकाने से पहले ही उनका निधन हो गया.
उनके बाद प्रधानमंत्री बनीं इंदिरा गाँधी ने सरकार की तरफ़ से लोन माफ़ करने की पेशकश की लेकिन उनकी पत्नी ललिता शास्त्री ने इसे स्वीकार नहीं किया और उनकी मौत के चार साल बाद तक अपनी पेंशन से उस लोन को चुकाया._  
                                                                          2 अक्टूबर  प-sabhar

Thursday, April 15, 2010

महाकुम्भ 2010 मेला पुलिस की सवेदनशीलता- 1

  महाकुम्भ मेला पुलिस की सवेदनशीलत इस साही स्नान में  जगह जगह देखने को मिलाती रही <; बात १३ अप्रेल, समय सायं ५.३० बजे, स्थान चंडी पुल के मध्य नीचे रोड से पुल के ऊपर तक पहुचने के लिए बनी  संपर्क सीढ़ियों से सम्बंधित है, जिस पार काफी दूर तक बस की रेलिंग लगी थी <; यात्री लालजी वाला से गौरिसंकर द्वीप- दिव्या सेवा मिसन, पायलट बाबा, छत्तीस गढ़ अस्रम से होकर  संपर्क सीढ़ियों से चंडी पुल की तरफ बढ़ रहे थे, सीढ़ियों पर  दवाव  बढ़ रहा था < इस भीर में बूढ़े ब्यक्तियो की संख्या थी उनके सर पर समान भी था <; जिससे उन्हें सीढ़िया चढ़ना तो दूर चलाना मुस्किल हो रहा था<; ऊपर से भीढ़ का दवाव < ऐसे में लगभग ३० फिट उची इन सीढ़ियों को पार कराने  के लिए तैनात मात्र ५ से ६ पुलिस कर्मियों को काफी मसक्कत करनी परी<
          दबाव को देखकर रोगते कपा देने वाले इस दृश्य  में पुलिसवालो की सदासयता ने सराहनीय भूमिका निभाई<   एक तरफ वे भीर के दबाव को कट्रोल करते दूसरी ओर उन बूढ़े महिला- पुरुष  को सामान सहित गोद में उठा- उठा कर पुल के ऊपर पहुचाते < सहारा पाकर ऊपर पहुचने वाले असहायो की जुबानो से जुग-जुग जियो मेरे लाल, बेटा तुन्हारी तरक्की होय, थारो लाडलो सुखी होऊ जैसे शब्द सुनकर कोई भी उत्साहित हुए बिना रह कैसे सकता है <; 
        किसी ने सच ही कहा है की संवेदनाये संवेदनाओ को बढ़ाती है< पुलिस वालो की संवेदनाशीलता  उभरने के लिए ऐसे ही निश्छल माँ का हृदय चाहिए< आखिर वे भी तो किसी के लाडले है <
         

Thursday, April 8, 2010

विश्व का महानतम अध्यात्मिक अनुष्ठान हरिद्वार कुम्भ-2010

जब-जब विश्व के रीती रिवाजों, चेतनाओ में असंतुलन , परिवर्तन आया भारत सदा से विश्व चेतना का मर्गादर्सक रहा है<  चुकी १२ वर्ष में सूर्य में बदलाव होता है> सूर्य का संबंध मानवीय चेतना से है, अतः उसके साथ- साथ मानवीय प्रकृति और ब्यवहार में भी बदलाव आता है < परिणामतः सामाजिक नीतियों, रीती रिवाजो में परिवर्तन की आवश्यकता अनुभव होती है < महाकुम्भ इसी परिवर्तन के अनुरूप समाधान खोजने का अयं है< कुम्भ में सम्पूर्ण विश्व की बिभूतिया सामायिक धर्म की खोज के लिए एकत्र होती रही है< सभी अपने धर्म, मत, पंथ, संप्रदाय वेश, सिधान्तो से परे हटके मानवता के हित में समाधान पर मंथन करते रहे है<  परिणामतः एक विशेष सामायिक धर्म का निस्पछा भाव से निर्धारण होता था और सभी अपने चेत्र के पिठाधिस्वर के रूप में १२ वर्षो तक पालन करते थे < चुकी सिधांत सर्वमान्य होते थे अतः उन्हें लोकप्रियता मिलाना स्वाभाविक था<
                   दुःख है की आज सब बदल चूका है, फिर भी एस महानतम अनुष्ठान तो कहना ही परेगा <

Monday, March 1, 2010

नाशिक, इलाहबाद, उज्जैन, हरिद्वार चार कुम्भ स्थलों में हरिद्वार हिमालय के ऋषियों का द्वार

 इस कुम्भ की प्रमुख विशेषताए
           १- १० दसकों की  इस शदी के प्रथम दशक में कुम्भ की शुरुवात.
           २. नाशिक, इलाहबाद, उज्जैन, हरिद्वार  चार  कुम्भ स्थलों में हरिद्वार हिमालय के ऋषियों का द्वार है ,
           ३- प्रथम कुम्भ का प्रभाव पूरी शदी तक रहता है, चूकि हरिद्वार पूर्ण ऋषि चेतना का पर्याय है  अतः अब पूरी शदी तक ऋषियों की परम्पराओ का विस्तार होगा ऐसा मानना चाहिए, हीनता, उदंडता, अत्याचार का दौर समाप्त होगा,
  ४. यहाँ गंगा की गोद, हिमालय की छाया के अतिरिक्त शिव, पारवती, ऋषि तंत्र का विशेष संयोग भी है,
  ५. हरिद्वार देश की अध्यात्मिक राजधानी है, अतः सम्पूर्ण विश्व की प्रकृति का अध्यात्मिक होना सुनिश्चित है,
 ६- शाश्त्र मत है क़ि जब किसी स्थान पर कोई विशेष अध्यात्मिक सुयोग घटित  होना होता  है तो उसके दशक पूर्व से वहा का वातावरण दैवीय होने लगता है, हरिद्वार के सम्बन्ध में यह बात पूरी तरह लागु होती है, पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य के प्रयोग से उपजी अध्यात्मिक उर्जा शांतिकुंज से और योग की पतंजलि पीठ से आज विश्व ब्यापी होकर दुनिया के लिए जीवनदान बन रही है और विश्व इश अध्यात्मिक नगरी की और खीचा अ रहा है.
                       विश्व में नए संकल्प उठ रहे है,

Wednesday, January 13, 2010

अध्यात्मिक साम्यवाद की प्रमुख आवश्यकता संवेदनशील प्रशाशन का विकास

                    पारिवारिकता परक  संवेदनशील प्रशाशन का विकास अध्यात्मिक साम्यवाद की  पहली सीढ़ी  है. इस  प्रशाशन में खीझ  नहीं होती. तनाव, दबाव , हताशा, निराशा नहीं होता<  इस प्रशाशन का माडल   सीधी रेखा   में नहीं होता अपितु राउंड में बैठ कर काम   करता है, सामाजिक स्तर पर  कोई bara छोटा नहीं होता, सभी  एक दुसरे के पूरक होते है , एक दुसरे  को कमजोर करने का कोई प्रयास  नहीं करता< सभी आपस में सुख दुःख के भागीदार बनाते है,
                      कंपनी या संसथान का लकच्या सभी मिलजुल कर तय करते  है, ग्राहक को भी वहा परिवार का ही अंग मान कर जेब पर नजर डाली जाती है< एक बात काफी महत्वपूर्ण की लोग अपनी छमता भर काम करते है और आवश्यक आवश्यकता भर लेकर निर्वाह करते है. जब  समान जीवन शैली अपनाना सबका संकल्प होगा तो पैसे की अमीरी गरीबी समाप्त होगी और शोषक-शोषित वर्ग का अंत होगा  अब  समय की माग हो रही है की ऐसे समाज की रचना के लिए हम खुद तैयार हो अन्यथा  समाज अपना रास्ता खुद तय कर लेगा तब काफी देर हो चुकी होगी < हम समय की पुकार सुने<     

Thursday, January 7, 2010

जैसे बढ़ाते अध्यात्मिक साम्यवादी आन्दोलन का एक पहिया रुक गया

किसी का कमेन्ट मुझसे आज  डिलीट हो गया, उसे पढ़ा  भी नहीं था > एक  छोटी सी चूक बढ़ा कारन बन सकती है> समाज परिवर्तन्  की सकारात्मक धारा को अवरुद्ध कर सकती है क्यों की इस संसार में कोई भी बात छोटी  नहीं हुआ कराती>  समाज जिसे  छोटी बात, छोटे  लोग, आदि  कहकर भुला देता है अध्यात्मिक साम्यवाद उसी में महानता की संभावना की तलाश करता है > बर्तमान  कठिनाइयों  का कारन हर स्टार पर नजरादाज करने की आदत  ही है> जैसे बढ़ाते अध्यात्मिक साम्यवादी आन्दोलन का एक पहिया रुक गया >  आशा है अप पुनः सदेश भेजोगे >
धन्यवाद
                              

Tuesday, January 5, 2010

क्या है अध्यात्मिक साम्यवाद

कार्लमार्क्स ने साम्यवाद का नारा दिया था. सम्पूर्ण विश्व में फैले पूजी वाद की जरो को हिलाने में इसकी बरी भूमिका रही> लेकिन दुखद की यह अपनी ही जमीं पर दम तोरने के लिए विवश हुआ > सम्पूर्ण विश्व उसका दंड भी भोग रहा है.> इस विचारधारा से जुरना कभी शान मणि जाती थी> क्यों की इसमे गरीबी अमीरी की खाई को पटाने की शक्ति समाई थी> ग्लोबलिजेशन की अंधी में तबाह होते विश्व के सामने पुनः साम्यवाद जैसे सूत्र की तलाश जग रही है.> अध्यात्मिक साम्यवाद उशी की दिशा में एक पूर्ति हो सकती है > निचे कुछ विचार दिए जा रहे है पाठक से आग्रह है की वे भी अपने विचार भेजे .......


१- कार्लमार्क्स के साम्यवाद में था वर्ग संघर्ष
जबकि
अध्यात्मिक साम्यवाद का सूत्र है संघर्ष नहीं वर्ग सामंजस्य

२- कार्लमार्क्स के साम्यवाद में हरताल के लिए संगठन
जबकि
अध्यात्मिक साम्यवाद का सूत्र है नेक कार्य के लिए सामूहिक संकल्प

३- कार्लमार्क्स के साम्यवाद में पूजी छिन लो और बाट दो
जबकि
अध्यात्मिक साम्यवाद का सूत्र है संपत्ति का लोकहित में स्वैक्छिक नियोजन करना

४ कार्लमार्क्स के साम्यवाद में ये कार्य प्रशाशन के दबाव में होते है
जबकि
अध्यात्मिक साम्यवाद में जानत स्वनुशाशन में सभी निर्णय लेती है.